Thursday 4 October 2012

THANKSGIVING FOR A DIVINE EVENT



 हफ़्तों से ऐसी आस में आकाश को हम ताकते
बूँदें हवा के साथ उतरेंगी हमारे बाग़ में
कुछ दुआ थी कुछ रहम था
कुछ मौसमों का अहम् था
आखिर में जो उतरी तो क्या उतरी मियां छप्पन कला
ऐसी हुई वैसी हुई
इस बार क्या बारिश हुई  .

2 comments:

Anonymous said...

Nice one
Juhi

अफ़लातून said...

सुन्दर.